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11.3.12

एक पल की उम्र लेकर - पाठकों के विचार/समीक्षा - डा॰ महेंद्रभटनागर

प्रसिद्ध वेबपत्रिका 'हिन्द युग्म' के 'आवाज़' मंच के अधिष्ठाता-संचालक यशस्वी संगीतकार-गीतकार श्री॰ सजीव सारथी जी का प्रथम प्रकाशित कविता-संग्रह है।

सजीव सारथी जी मूलत: गीतकार हैं; किन्तु प्रस्तुत संग्रह में अत्याधुनिक शैली में लिखित कविताएँ समाविष्ट हैं — कुछ ग़ज़लों को छोड़ कर।

यद्यपि ये रचनाएँ मुक्त-छंद में रचित हैं; किन्तु उनमें एक विशेष लय व प्रवाह है। प्रांजलता के कारण सजीव सारथी जी के काव्य में प्रभविष्णुता द्रष्टव्य है। आम आदमी को उनके काव्य का रसास्वादन करने में कोई बाधा नहीं आती। भाषा-सहजता ने काव्य को सम्प्रेषणीय बनाया है। लोक-प्रचलित शब्दावली उनके काव्य में अनायास उतरी है।

सजीव सारथी जी अपने इर्द-गिर्द की प्रकृति के प्रति बड़ी मार्मिक प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। यथा — सूरज, नदी, साहिल की रेत, बारिश, मिट्टी, सुबह की ताज़गी आदि के प्रति।

उनके काव्य-सरोकार समसामयिक सामाजिक-राजनीतिक परिवेश से भी सम्बद्ध हैं।

मानव-मनोविज्ञान की उन्हें सूक्ष्म पहचान है। 'एक पल की उम्र लेकर' शीर्षक कविता में अनुभूति की गहराई भावक के हृदय को झकझोर देती है :

सुबह के पन्नों पर पायी शाम की ही दास्ताँ
एक पल की उम्र लेकर जब मिला था कारवाँ,
वक्त तो फिर चल दिया एक नयी बहार को
बीता मौसम ढल गया और सूखे पत्ते झर गये,
चलते-चलते मंज़िलों के रास्ते भी थक गये
तब कहीं वो मोड़ जो छूटे थे किसी मुकाम पर
आज फिर से खुल गये, नये क़दमों, नयी मंज़िलों के लिए,
मुझको था ये भरम कि है मुझी से सब रोशनाँ
मैं अगर जो बुझ गया तो फिर कहाँ ये बिजलियाँ
एक नासमझ इतरा रहा था एक पल की उम्र लेकर!

सुकवि सजीव सारथी जी ने अभिनव अभिव्यक्तियों से हिन्दी-कविता को समृद्ध किया है।


डा॰ महेंद्रभटनागर

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